परिचय
रीवा दरबार काल में रीवा राज्य में 1.1.1923 को दो वनमंडल रीवा एवं उमरिया गठित किये गये थे। वर्ष 1953 में वन मंडलो का पुनर्गठन करते हुये रीवा, उमरिया, सीधी तथा शहडोल, इस प्रकार कुल चार वन मंडलों का गठन किया गया तथा वर्ष 1983 में रीवा वन मंडल का पुनर्गठन कर क्रमशः रीवा व सतना वन मंडल का गठन किया गया। रीवा वन विभाग वर्तमान में रीवा और मऊगंज जिलों में फैला है, और इसमें लगभग 1 लाख हेक्टेयर वन भूमि (आरक्षित और संरक्षित) है।
लोकेशन
रीवा वन मंडल मध्यप्रदेश राज्य के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित है। रीवा ज़िले का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 6314 वर्ग किलो मीटर है। भौगोलिक दृष्टि से यह क्षेत्र 240 15’ 10‘‘ एवं 250 15’ 22‘‘ अक्षांश उत्तर तथा 810 05’ 15‘‘ एवं 820 15’ 08‘‘ देशान्तर पूर्व के मध्य स्थित है।
क्षेत्र का संक्षिप्त प्रशासनिक इतिहास -
. रीवा वन मंडल का संपूर्ण वन क्षेत्र भूतपूर्व रीवा राज्य के अंतर्गत आता था। वर्ष 1983 के पूर्व, वन मंडल रीवा तथा वन मंडल सतना संयुक्त रूप से वन मंडल रीवा में सम्मिलित थे, जिसमें रीवा व सतना जिले के अंतर्गत आने वाला वन क्षेत्र शामिल था। राज्य शासन की अधिसूचना क्रमांक 1101 दिनांक 6-1-83 द्वारा रीवा वन मंडल का पुनर्गठन कर रीवा राजस्व जिला में आने वाले वन क्षेत्रों हेतु रीवा वन मंडल व सतना राजस्व जिला में आने वाले वन क्षेत्रों हेतु सतना वन मंडल का गठन किया गया है।
. रीवा के उत्तर दिशा में उत्तर प्रदेश के जिला चित्रकूट व इलाहाबाद, पूर्व में उत्तर प्रदेश का जिला मिर्जापुर, दक्षिण में जिला सीधी तथा पश्चिम में जिला सतना की सीमा लगती है।
. रीवा वन मंडल के अधिसूचित वनों में कुल 403 वन कक्ष हैं, जिनमें से म.प्र.व.वि.नि. को हस्तांतरण की अनुमति प्राप्त 35 वन कक्ष हैं। अतः इस कार्य आयोजना के प्रबंधन क्षेत्र में 368 वन कक्ष सम्मिलित किये गये हैं ।
वन क्षेत्र का वैधानिक इतिहास
. कार्य आयोजना क्षेत्र के अंतर्गत दो प्रकार के वन हैं - आरक्षित वन एवं संरक्षित वन। स्वतंत्रता के पूर्व रीवा वन मंडल का क्षेत्र तत्कालीन रीवा राज्य का भाग था। दोनों प्रकार के वनों का प्रारंभिक गठन रीवा दरबार काल में ’’महफूज़ा जंगल’’ एवं ’’आम जंगल’’ के रूप में किया गया था। रीवा राज्य में वनों के संबंध में सर्वप्रथम दरबार आदेश द्वारा ’’कानून जंगल रियासत, रीवा (बघेलखंड), 1927‘‘ बनाया गया। इसके पश्चात् दरबार आदेश क्र. 1709 दि. 22.04.1935 से ’’रीवा राज्य वन अधिनियम, 1935’’ लागू किया गया।
. स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत दि. 04.04.1948 को विंध्यप्रदेश, नवीन राज्य अस्तित्व में आया। विंध्यप्रदेश के राजप्रमुख का ’’विंध्यप्रदेश (विधियों का लागू होना) अध्यादेश, 1948’’ रीवा गजट में दि. 07.08.1948 को प्रकाशित हुआ। इसके अनुसार रीवा दरबार काल में रीवा राज गजट में प्रकाशन के बाद से वर्तमान तक लागू रहे सभी अधिनियमों, नियमों (भू-राजस्व एवं भू-स्वामित्व के मामलों से संबंधित स्थानीय अधिनियमों, नियमों, आदि को छोड़ कर), आदि के साथ रीवा राज्य वन अधिनियम, 1935 दि. 07.08.1948 से समस्त विंध्यप्रदेश में लागू हो गया। विंध्यप्रदेश के भाग-’सी’ राज्य में रूप में गठन के साथ ’’भाग-’सी’ राज्य (विधि) अधिनियम, 1950’’ के अंतर्गत दि. 16.04.1950 को रीवा राज्य वन अधिनियम, 1935 का निरसन होने के साथ ही भारतीय वन अधिनियम, 1927 लागू हो गया। राज्यों के पुनर्गठन के फलरूवरूप नवगठित म.प्र. में विंध्यप्रदेश के दि. 01.01.1956 को विलय के बाद ’’म.प्र. (विधियों का विस्तार) अधिनियम, 1958’’ की धारा 53 (1) के अंतर्गत दि. 01.01.1959 से म.प्र. के सभी संशोधनों सहित भारतीय वन अधिनियम, 1927 विंध्यप्रदेश क्षेत्र में भी लागू हो गया।
. आरक्षित एवं संरक्षित, दोनों प्रकार के वनों का उनका वर्तमान वैधानिक दर्जा ’’भारतीय वन (म.प्र. संशोधन) अधिनियम, 1965’’ की धारा 20ए से प्राप्त होता है। धारा 20ए(1) के अंतर्गत यह प्रवर्तित किया गया है कि राज्य के पुनर्गठन की दिनांक के ठीक पूर्व तत्कालीन शासक द्वारा तत्समय प्रचलित किसी कानून, प्रथा, नियम अधिनियम, आदेश या अधिसूचना के अधीन मान्यता प्रदान किए गए सभी आरक्षित वन इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार भी आरक्षित माने जाएंगे। इसी प्रकार धारा 20ए(4) के अंतर्गत यह प्रवर्तित किया गया है कि शासन के स्वामित्व के सभी वन एवं पड़त भूमियां (आरक्षित वनों को छोड़ कर) इस अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत संरक्षित वन माने जाएंगे।
. वर्ष 1926 तक अधिसूचित - रीवा राज्य में वर्ष 1926 तक वनों को आरक्षित घोषित करने के पूर्व वन व्यवस्थापन की प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती थी, क्योंकि समस्त वन शासक की ही संपत्ति माने जाते थे एवं विशेष उपहार या इलाकेदारों या पवाईदारों की सनदों के रूप के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति का इन पर कोई वैधानिक अधिकार नहीं होता था। इस दौरान आरक्षित किए गए वन खंडों की सीमाएं न तो मौके पर सीमांकित की गई थीं, न दरबार आदेशों में इनका उल्लेख था एवं वनों का क्षेत्रफल भी नजरी आधार पर ही उल्लेखित था। किन्तु स्थानीय जनता सामान्य तौर पर इन आरक्षित वन क्षेत्रों के विस्तार से परिचित थी। बाद में रीवा राज्य वन अधिनियम, 1935 लागू होनेे के उपरांत पूरे रीवा राज्य में ऐसे 10 आरक्षित वन खंडों के संबंध में पुनः अधिसूचना क्र. 35 दि. 27.05.1935 जारी कर इनको धारा 20 के अंतर्गत आरक्षित वन घोषित किया गया।
. वर्ष 1927 के बाद अधिसूचित - वर्ष 1927 से रीवा राज्य ’’कानून जंगल रियासत, रीवा (बघेलखंड), 1927‘‘ लागू होने के साथ ही ’’महफूजा जंगल’’ घोषित किए जाने की विधिवत् प्रक्रिया निर्धारित हो गई। ’’महफूजा जंगल’’ रीवा राज्य वन अधिनियम, 1935 लागू होने के पश्चात् ’’आरक्षित वन’’ कहलाए जाने लगे। वर्ष 1932 के पश्चात् से वन खंडों का आरक्षण किए जाने के पूर्व वन व्यवस्थापन अधिकारी की नियुक्ति के साथ ही वन व्यवस्थापन की समस्त औपचारिकताएं पूर्ण की जाने लगीं। तत्समय रीवा राज्य में आम जनता द्वारा वनों के एक बड़े क्षेत्र को पुकारे जाने वाले स्थानीय नाम से महफूजा जंगल घोषित किया जाता था, जिसमें पृथक्-पृथक् वन खंड क्रमांक एवं नाम दिए जाते थे। वर्तमान रीवा वन मंडल के क्षेत्र में वर्ष 1934 में 5 अधिसूचनाओं द्वारा 15 आरक्षित वन खंडों का गठन किया गया था।
आरक्षित वन - आरक्षित वनों के गठन हेतु जारी अधिसूचनाओं को दो श्रेणियों में रखा जा सकता है: रीवा राज्य में वर्ष 1926 तक अधिसूचित, रीवा राज्य में वर्ष 1927 के पश्चात् अधिसूचित।
संरक्षित वन - संरक्षित वनों के गठन हेतु जारी अधिसूचनाओं को तीन श्रेणियों में रखा गया है: रीवा दरबार आदेश द्वारा असीमांकित संरक्षित वनों की अधिसूचना, सर्वेक्षण एवं सीमांकन के पश्चात् संरक्षित वन खंडों की अधिसूचनाएं एवं वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के अंतर्गत प्राप्त राजस्व भूमियों को संरक्षित वन खंड अधिसूचित करने हेतु जारी अधिसूचनाएं।
वर्ष 1927 से रीवा राज्य में लागू हुए ’’कानून जंगल रियासत, रीवा (बघेलखंड), 1927‘‘ में ऐसी समस्त खाली भूमि को, जो आरक्षित वन नहीं थी अथवा अन्य उपयोग की नहीं थी, ’’आम जंगल’’ घोषित किया गया था। वर्ष 1935 से लागू रीवा राज्य वन अधिनियम की धारा 29 के अन्तर्गत रीवा दरबार आदेश क्र. 124 दि. 06.02.1937 (रीवा राज गजट दि. 20.02.1937 में प्रकाशित) से ब्लैंकेट अधिसूचना जारी कर ऐसीे समस्त वन भूमि तथा खाली भूमि जो कि आरक्षित वन, रैयती खातों (सीर एवं बाग सहित), आबादी, तालाब, नगर पालिका, छावनी एवं बाजार में सम्मिलित नहीं थी, उसे धारा 29 के अंतर्गत ’’संरक्षित वन’’ घोषित किया गया।
रीवा दरबार काल में वर्ष 1883 से 1926 तक आरक्षित वन बिना सीमा दर्शाए नजरी आधार पर अधिसूचित किए जाते थे। अतः तत्समय वन खंडवार वनों का मानचित्र बनाना संभव नहीं था। वर्ष 1927 के पश्चात् भी सीमा सहित अधिसूचित किए गए आरक्षित वन खंडों की स्थिति टोपोशीटों पर ठीक से बिठाए बिना मोटे रूप से ही अंकित की जाती रही। रीवा दरबार काल में अधिसूचित आरक्षित वनों का सर्वेक्षण रीवा राज्य के वन विभाग द्वारा वर्ष 1934 व 1942 में प्लेन टेबल व गुंटर्स चेन की सहायता से किया गया था। इनमें 4’’=1 मील मापमान के मानचित्र पर वन खंडों की मात्र बाह्य सीमाओं को खींचा गया था एवं उनको समुचित रूप से बिठाया नहीं गया था। रीवा दरबार काल में दरबार आदेश से ब्लैंकेट रूप से संरक्षित वन बिना सीमाओं के अधिसूचित किए गए थे एवं वन खंड भी नहीं बनाए गए थे।